योजनाएं 

  • अंग्रेजी-हिंदी तथा हिंदी अंग्रेजी तकनीकी कोश/ शब्दावली तैयार एवं प्रकाशित करना।
  • अंग्रेजी-क्षेत्रीय भाषाओं के तकनीकी कोश/ शब्दावली तैयार एवं प्रकाशित करना।
  • त्रिभाषा शब्दावली तैयार एवं प्रकाशित करना।
  • परिभाषा कोश तैयार एवं प्रकाशित करना।
  • शिक्षार्थी शब्दावलियाँ तैयार एवं प्रकाशित करना।
  • विभागीय शब्दावलियाँ तैयार करना, अनुमोदित / प्रकाशित करना।
  • शब्दावलियों का परिशोधन एवं अद्यतनीकरण I 
  • अखिल भारतीय शब्दावली की पहचान और प्रकाशन I 
  • निर्मित एवं परिभाषित शब्दों का प्रचार-प्रसार और विवेचनात्मक समीक्षा ।
  • हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में विश्वविद्यालय स्तर की पुस्तकों का प्रकाशन।
  • पत्रिकाओं का निर्माण एवं प्रकाशन
  • आयोग के प्रकाशनों की बिक्री, वितरण एवं प्रदर्शनियों का आयोजन I

उपरोक्त दी गई योजनाओं का संक्षिप्त विवरणः-

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1. अंग्रेजी-हिंदी तथा हिंदी-अंग्रेजी तकनीकी शब्दावलियों / शब्द-कोशों का निर्माण
छात्रों, विद्वानों, शिक्षकों, अनुसंधानकर्ताओं, वैज्ञानिकों तथा अन्य व्यक्तियों को; जो अपना शैक्षणिक, सांस्थानिक तथा सरकारी काम हिंदी माध्यम से कर रहे हैं, उन्हें मानक तकनीकी शब्दावली की आवश्यकता होती है। हिंदी में ऐसी मानकीकृत शब्दावली न केवल शब्दों को एकरूपता प्रदान करती है, बल्कि विभिन्न राज्यों में शब्दों के प्रयोग में पाई जाने वाली असमानताओं को भी दूर करती है, जिनमें एक ही शब्द के लिए भिन्न-भिन्न पर्यायों का प्रयोग किया जाता है। 

2. अंग्रेजी-क्षेत्रीय भाषा तकनीकी शब्दावलियों/ शब्द-कोशों का निर्माण
क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन करने वाले छात्रों और विद्वानों के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में मानक तकनीकी शब्दावली की जरूरत होती है। ऐसी शब्दावलियाँ शोधकर्ताओं तथा वैज्ञानिकों के लिए भी अत्यधिक उपयोगी होती है। क्षेत्रीय भाषाओं की मानकीकृत शब्दावली राज्यों की विभिन्न भाषाओं में एकरूपता लाने के लिए विषय-क्षेत्र उपलब्ध कराती है।

3. त्रिभाषा तकनीकी शब्दावली / शब्द-कोशों का निर्माण
इन शब्दावलियों में एक अंग्रेजी शब्द के लिए एक हिंदी पर्याय और आधुनिक भारतीय भाषा (भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित) का कोई एक पर्याय दिया जाता है। संबंधित क्षेत्रीय भाषा में हिंदी शब्द का लिप्यंतरण त्रिभाषा-कोश में करने का प्रयास किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि देश सभी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में राजभाषा हिंदी का प्रचार-प्रसार जन-साधारण तथा अन्य लक्ष्य समूहों में किया जा रहा है और उस प्रकार यह लोकप्रिय बनती जा रही है। 

4. परिभाषा-कोशों का निर्माण
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दों को उनकी परिभाषाओं के परिप्रेक्ष्य में अच्छी तरह से समझा जा सकता है। अतः आयोग सभी विषयों / क्षेत्रों में परिभाषा-कोशों का निर्माण करता है। सामान्यतः शब्दावली में अंग्रेजी तकनीकी शब्द और हिंदी / क्षेत्रीय भाषा के पर्याय दिए गए होते हैं जबकि परिभाषा-कोश में अंग्रेजी तकनीकी शब्द और उनके हिंदी / क्षेत्रीय भाषा के पर्याय दिए जाते हैं तथा उनकी संकल्पनाओं को कुछ ही वाक्यों में स्पष्ट किया जाता है। अतः परिभाषा-कोश छात्रों, शिक्षकों, शोधकर्ताओं, विद्वानों, वैज्ञानिकों तथा अन्य प्रयोक्ताओं के लिए महत्वपूर्ण और आवश्यक बन गए हैं। इस प्रकार, परिभाषा-कोश शब्दावली निर्माण प्रक्रिया का ही विस्तृत रूप है और इससे शब्दों की बेहतर समझ और उनका प्रयोग सुनिश्चित होता है।

5. स्कूल-स्तर की शब्दावली का निर्माण
यदि किसी व्यक्ति को स्कूल स्तर पर ही हिंदी या क्षेत्रीय भाषा के तकनीकी शब्दों का ज्ञान कराया जाता है तो वह उन्हें अच्छी तरह से समझ सकेगा, ग्रहण कर सकेगा और याद रख सकेगा। आयोग, स्कूल स्तर के अनेक विषयवार बृहत् शब्द-संग्रहों तथा परिभाषा-कोशों का निर्माण कर चुका है। 

6. विभागीय शब्दावलियों का निर्माण और/ या अनुमोदन
अनेक सरकारी विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, वैज्ञानिक संगठनों, बैंकों तथा अन्य एजेंसियों को अपने कार्यालयों / संस्थाओं के लिए तकनीकी शब्दावलियों की जरूरत होती है। आयोग अपने द्वारा निर्धारित प्रक्रिया तथा मानकों के अनुसार शब्दावली का निर्माण करता है या इन संस्थाओं द्वारा तैयार की गई शब्दावली का अनुमोदन करता है ताकि ये एजेंसियाँ अपने आंतरिक और / या अंतर्विभागीय प्रयोग के लिए अपनी विभागीय शब्दावली प्रकाशित कर सकें। ऐसी एजेंसी अपनी विभागीय शब्दावलियों का प्रकाशन स्वयं या आयोग के साथ संयुक्त रूप से कर सकती है। किसी कार्यालय/ संस्था/ एजेंसी विशेष के अनुरोध पर आयोग उनके प्रयोग के लिए विभागीय शब्दावलियाँ तैयार कर सकता है और उनका कापीराइट व प्रकाशन अधिकार अपने लिए सुरक्षित रखते हुए उनका मूल्य निर्धारित कर सकता है। आयोग विभागीय शब्दावली के प्रकाशन के संबंध में अनुरोध करने वाले कार्यालय/ संस्था/ एजेंसी के साथ करार या समझौता कर सकता है या पत्राचार द्वारा शर्तें और निबंधन तय किए जा सकते हैं।

7. शब्दावलियों का परिशोधन एवं अद्यतनीकरण
आयोग समय-समय पर शब्दावलियों और परिभाषा-कोशों की समीक्षा करता है। वैज्ञानिक नवाचारों, प्रौद्योगिकीय क्रांतियों, वैश्वीकरण, उदारीकरण तथा अन्य सामाजिक-आर्थिक विकासों के कारण जो नई अभिव्यक्तियाँ प्रचलन में आ गई हैं उनसे संबंधित नए उपयुक्त शब्दों को वर्तमान शब्दावलियों में जोड़ दिया जाता है ताकि उनका अद्यतनीकरण किया जा सके। पहले से निर्मित/ परिभाषित शब्दों को भी उचित प्रयोग और आवश्यक संशोधन और सुधार की दृष्टि से अद्यतन किया जाता है। उन शब्दों को हटा दिया जाता है जो अब प्रयोग में नहीं है।

8. अखिल भारतीय शब्दावली की पहचान और प्रकाशन
सभी शिक्षाविदों, भाषा-विज्ञानियों एवं विद्वानों की यह धारणा है कि भारतीय भाषाओं की तकनीकी शब्दावली ऐसी होनी चाहिए जिसमें सभी भाषाओं में परस्पर समरूपता हो ताकि उच्च शिक्षा अनुसंधान तथा सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिक ज्ञान के आदान-प्रदान एवं अंतर-भाषायी संप्रेषण में सुविधा रहे। इस प्रयोजन के लिए भारतीय भाषाओं में एक सर्वनिष्ठ एवं समरूप शब्द भंडार होना आवश्यक है। चूंकि देश के विभिन्न राज्यों की भाषाओं में तकनीकी शब्दों के मूलरूप प्रायः एक समान हैं अतः अनेक शब्दों में आपस में समानता दृष्टिगत होती है। आयोग ऐसे शब्दों की पहचान कर अखिल भारतीय शब्दावलियां प्रकाशित करता है। प्रयोक्ताओं को इन शब्दावालियों का निःशुल्क वितरण किया जाता है।

9. निर्मित एवं परिभाषित शब्दों का प्रचार-प्रसार और उनकी विवेचनात्मक समीक्षा
तकनीकी शब्दावली का तब तक कोई महत्व नहीं है जब तक उसका व्यापक प्रयोग न किया जाए। शब्दावली के प्रयोग में स्पष्टता और एकरूपता लाने के लिए उसका मानकीकरण ही नहीं बल्कि उसको लोकप्रिय बनाना भी परम आवश्यक है। यह तभी संभव होगा जब समाज के विभिन्न लक्ष्य-समूहों, प्रयोक्ता-समूहों, शिक्षकों, विद्वानों, प्रशिक्षणार्थियों तथा छात्रों आदि के साथ मिलकर निर्मित / परिभाषित शब्दों का प्रचार-प्रसार योजनाबद्ध ढंग से किया जाए, उन पर सक्रिय विचार-विमर्श किया जाए और परस्पर-संवाद सत्रों का आयोजन किया जाए। चूंकि विभिन्न स्तरों पर शिक्षकों को हिंदी/क्षेत्रीय भाषा की शब्दावली का पर्याप्त ज्ञान नहीं होता है अतः उन्हें निर्मित / परिभाषित पर्यायों से परिचित कराए जाने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न संस्थाओं के अधिकारियों और लिपिकवर्गीय कर्मचारियों तथा वैज्ञानिकों को तकनीकी शब्दों के प्रयोग मे समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अतः उन्हें हिंदी तथा अन्य आधुनिक भारतीय (क्षेत्रीय) भाषाओं में उचित रूप से अभिविन्यस्त/ प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। लक्ष्य-समूहों या प्रयोक्ता-समूहों की अनेक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए शब्दावली के प्रचार-प्रसार तथा उसकी विवेचनात्मक समीक्षा के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

10. हिंदी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में विश्वविद्यालय स्तर की पुस्तक-निर्माण योजना
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग विभिन्न राज्यों की हिंदी ग्रंथ अकादमियों तथा विश्वविद्यालय प्रकोष्ठों के माध्यम से विभिन्न विषयों पर अप्रत्यक्ष रूप से विश्वविद्यालय स्तर की पुस्तकों का प्रकाशन करता है। वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, विश्वविद्यालय स्तर की पुस्तकों के प्रकाशन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के अतिरिक्त किए गए कार्य का अनुवीक्षण और समन्वय करता है। विश्वविद्यालय स्तर की पुस्तक-निर्माण योजना का क्रियान्वयन हिंदी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में पुस्तक निर्माण के लिए वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की सहायता अनुदान योजना तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार की संशोधित योजना 1979 के दिशा-निर्देशों के अनुसार किया जाता है। ये पुस्तकें उच्च शैक्षिक स्तर की होनी चाहिए, साथ ही इनमें हिंदी/ क्षेत्रीय भाषाओं की मानक शब्दावली का समावेश होना चाहिए। इस योजना के तहत राज्य की ग्रंथ अकादमियों और विश्वविद्यालय प्रकोष्ठों को अनुदान जारी किया जाता है। वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग अपनी ओर से क्षेत्रीय भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित नहीं करता है। बहरहाल, क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम परिवर्तन की सुविधा के लिए वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग संबंधित क्षेत्रीय भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित करने के लिए विभिन्न राज्यों के पाठ्य-पुस्तक बोर्डों तथा विश्वविद्यालय प्रकोष्ठों को सीधे या संबंधित राज्य सरकार के माध्यम से अनुदान उपलब्ध कराता है, और इन गतिविधियों का अनुवीक्षण करता है।

11. पत्रिकाओं का निर्माण एवं प्रकाशन
आयोग मूल लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए हिंदी में दो त्रैमासिक पत्रिकाएँ निकालता है और इस प्रकार छात्रों, विद्वानों, शिक्षकों, वैज्ञानिकों, पत्रकारों आदि की जरूरतों को पूरा करता है। एक त्रैमासिक पत्रिका का नाम ‘ज्ञान गरिमा सिंधु’ है जो सामाजिक विज्ञान और मानविकी विषयों से संबंधित है और दूसरी त्रैमासिक पत्रिका का नाम ‘विज्ञान गरिमा सिंधु’ है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विषयों / क्षेत्रों पर निकाली जाती है।

ज्ञान गरिमा सिंधु
‘ज्ञान गरिमा सिंधु’ एक त्रैमासिक पत्रिका है जिसमें मानविकी तथा सामाजिक विज्ञान विषयों से संबंधित लेख प्रकाशित होते हैं। इस पत्रिका का उद्देश्य हिंदी में अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए मानविकी और सामाजिक विज्ञान विषयों से संबद्ध उपयोगी एवं नवीनतम मूल पाठ प्रदान करना तथा पूरक साहित्य को लोकप्रिय बनाना है। यह पत्रिका मिले-जुले प्रकार की है, जिसमें मानविकी तथा सामाजिक विज्ञान से संबंधित तकनीकी लेख, शोध लेख, निबंध, मॉडल शब्दावलियाँ, परिभाषा-कोश, कविताएँ, व्यंग्य चित्र, सूचनाएँ, समाचार तथा पुस्तक समीक्षा आदि प्रकाशित की जाती है। 

विज्ञान गरिमा सिंधु  
‘विज्ञान गरिमा सिंधु’ भी एक त्रैमासिक पत्रिका है, जिसमें आधार-विज्ञानों, अनुप्रयुक्त विज्ञानों तथा प्रौद्योगिकी से संबंधित लेख प्रकाशित किए जाते हैं। इस पत्रिका का उद्देश्य हिंदी में अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए विज्ञान विषयों से संबंधित उपयोगी तथा नवीनतम मूल पाठ प्रधान तथा पूरक साहित्य को लोकप्रिय बनाना है। यह पत्रिका मिले-जुले प्रकार की है जिसमें वैज्ञानिक लेख, शोध लेख, तकनीकी निबंध, मॉडल शब्दावलियां तथा परिभाषा-कोश, विज्ञान से संबंधित कविताएँ और कहानियाँ, व्यंग्यचित्र व वैज्ञानिक जानकारी, विज्ञान-समाचार, पुस्तक समीक्षाएँ आदि प्रकाशित की जाती हैं।

12. प्रकाशनों की बिक्री, वितरण एवं प्रदर्शनियों का आयोजन करना

आयोग के प्रकाशनों की बिक्री के लिए प्रकाशन विभाग, सिविल लाइन्स, दिल्ली में नियमित बिक्री केंद्र के अतिरिक्त आयोग में अपना नियमित बिक्री केंद्र भी है। प्रदर्शनियों / बैठकों/ कार्यशालाओं के दौरान भी बिक्री केंद्र की व्यवस्था की जाती हैं I आयोग के प्रकाशन निम्नलिखित बिक्री केंद्रों पर उपलब्ध हैं :-

1. सहायक निदेशक (बिक्री एकक)
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग,
(उच्चतर शिक्षा विभाग) शिक्षा मंत्रालय,
पश्चिमी खंड – 7 , रामकृष्णपुरम, सेक्टर-1,
नई दिल्ली – 110066

2. प्रकाशन नियंत्रक, प्रकाशन विभाग
भारत सरकार , सिविल लाइन्स,
दिल्ली- 110054

पिछले पृष्ठ पर जाने के लिए | पृष्ठ अंतिम अद्यतन किया गया, दिनांक: 14-09-2020